नालेज डेस्क
जान बूझकर न्यायिक संस्थाओं पर हमलों से सुरक्षा, बेवजह की आलोचना से बचाव और न्याय प्रणाली की अथॉरिटी को कम आंकने वालों को सज़ा देने के लिए जो कानूनी कॉंसेप्ट है, उसे कण्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट या अदालत की अवहेलना या अवमानना के नाम से समझा जाता है. पत्रकार एन राम, वकील और एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण और पूर्व मंत्री अरुण शौरी कण्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं इसलिए यह चर्चा में है. इस सिलसिले में आपको जानना चाहिए कि जो शब्द या फ्रेज़ आप किताबों, फिल्मों और खबरों में अक्सर सुनते रहे हैं, वो वास्तव में है क्या. क्या आपको कोर्ट की अवमानना का पूरा मतलब पता है? कब कोर्ट की अवमानना होती है और कब नहीं, क्या आपको ये मालूम है? ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब जानिए.
कहां से आया यह कॉंसेप्ट?
कण्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट का विचार सदियों पुराना है. इंग्लैंड में यह एक आम कायदा था जो राजा की न्यायिक शक्ति को बचाता था और बाद में राजा के नाम पर न्याय करने वाले जजों के पैनल के फैसलों की सुरक्षा के काम आया. जजों के आदेशों का पालन न करना सीधे राजा का अपमान समझा गया. समय के साथ समझ ये बनी कि जजों के आदेश न मानना, जजों या अदालत के दिए आदेश में बाधा पैदा करना, उनके खिलाफ किसी ढंग से निरादर व्यक्त करना दंडनीय अपराध है.
भारत में यह आज़ादी से पहले से चला आ रहा सिस्टम रहा है. शुरूआती हाई कोर्ट के अलावा, कुछ राजतंत्र व्यवस्था वाले राज्यों में भी यह कायदा था. जब भारत का संविधान बना, तब उसमें इस तरह के कायदे का ज़िक्र बाकायदा हुआ. आर्टिकल 129 और आर्टिकल 215 में क्रमशः सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को ये शक्तियां दी गईं. इसके बाद 1971 में बने कण्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट ने इस विचार को कानूनी रूप मिला.
किस तरह होती अदालत की अवमानना?
कानून के मुताबिक कोर्ट की अवहेलना को दो भागों सिविल और क्रिमिनल में रखा गया है. सिविल मामले में सीधी बात यह है कि अगर कोई व्यक्ति या संस्था कोर्ट के निर्देश का पालन न करे या कोर्ट के किसी निर्देश का जान बूझकर उल्लंघन करे. क्रिमिनल कण्टेम्प्ट के मामले को समझना थोड़ा पेचीदा है. यह असल में तीन तरह का हो सकता है : 1. किसी कोर्ट की अथॉरिटी को नीचा दिखाना या नीचा दिखाने की मंशा, अपमान करना या अपमान की मंशा शब्दों, संकेतों या एक्शनों से स्पष्ट हो. 2. किसी न्यायिक कार्यवाही में पूर्वाग्रह पैदा करना या हस्तक्षेप करना. 3. न्यायिक क्षेत्र में दखलंदाज़ी या रुकावट पैदा करना. कण्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट के मामले में सज़ा का प्रावधान भी सरल है यानी छह महीने तक की कैद या दो हज़ार रुपये तक का जुर्माना. न्यायिक कार्यवाहियों को लेकर सही और सटीक रिपोर्टिंग करना इस कानून के दायरे में नहीं आता यानी इसलिए किसी को इस कानून के तहत सज़ा नहीं दी जा सकती. किसी केस की सुनवाई हो जाने या उसे खारिज किए जाने के बाद किसी न्यायिक आदेश पर गुणवत्ता के आधार पर किया गया सटीक विश्लेषण भी कण्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट के दायरे में नहीं आता.
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