उप्र : 2014 के रिकार्ड को भी तोड़ सकती है भाजपा, विपक्ष में दिखने लगी है निराशा

लखनऊ(हि.स.)। इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा 2014 के अपने रिकार्ड (71 सीट पर जीत हुई थी। वहीं सहयोगी अपना दल ने दो सीटों पर जीत दर्ज की) को तोड़ सकती है। उप्र में भाजपा की सक्रियता और विपक्ष में बढ़ती निराशा कुछ इसी ओर इशारा कर रही है। रालोद को साथ लेकर समाजवादी पार्टी अब तक विपक्ष की ठोस भूमिका निभाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन रालोद का भाजपा की ओर झुकाव बढ़ जाने से समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में निराशा देखने को मिल रही है।

2014 से नरेन्द्र मोदी के समय की शुरूआत थी। उससे पहले उप्र में भाजपा शून्य की ओर अग्रसर थी। कोई अनुमान नहीं लगा रहा था कि भाजपा 40 से ज्यादा सीटें निकाल पाएगी, लेकिन भाजपा ने यहां 78 सीटों पर चुनाव लड़कर 71 सीटें जीत लीं। पिछले 2009 के चुनाव की अपेक्षा उसके 61 सीटों की बढ़ोत्तरी हुई। वहीं सहयोगी दल अपना दल एस को दो सीटें मिलीं। सिर्फ सात सीटों में सपा को पांच और कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं। वह भी दोनों पार्टियों की पारिवारिक सीटें ही थीं। रायबरेली से सोनिया गांधी और अमेठी से राहुल गांधी की जीत हुई।

2014 में भाजपा को 42.63 प्रतिशत वोट मिले थे। उस चुनाव की सबसे बड़ी बात यह रही कि जिन सात सीटों पर भाजपा की हार हुई, वहां भी दूसरे स्थान पर भाजपा ही रही। उसके सहयोगी अपना दल एस ने एक प्रतिशत वोट शेयर के साथ दो सीटों पर विजय हासिल की। समाजवादी पार्टी को 2009 के लोकसभा चुनाव में 23 सीटें मिलीं थीं और वह पांच पर सिमट गयी। वहीं बसपा को इससे पूर्व 20 सीटें मिली थीं, वह शून्य पर पहुंच गयी। वोट शेयर की दृष्टि से देखें तो सपा के वोट शेयर में 1.06 प्रतिशत की कमी आयी और उसको 22.20 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि बसपा के वोट शेयर में 7.82 प्रतिशत की कमी आयी और 19.60 प्रतिशत वोट मिले। कांग्रेस तो बिल्कुल धाराशायी हो गयी और उसके वोट शेयर में 10.75 प्रतिशत की कमी आयी और उसे मात्र 7.50 प्रतिशत ही वोट मिले। रालोद को एक प्रतिशत से भी कम .86 प्रतिशत वोट मिले थे।

2019 में सपा, बसपा और रालोद का गठबंधन था। इस चुनाव में भाजपा के वोट प्रतिशत में 7.35 प्रतिशत की वृद्धि हो गयी, लेकिन नौ सीटें कम आयी और भाजपा को 62 सीटें ही मिल पायीं। भाजपा ने 2019 में 49.98 प्रतिशत वोट पाये थे। अपना दल को जोड़ लिया जाय तो दोनों को मिलाकर 51.19 प्रतिशत वोट मिले थे।

इस बार देखा जाय तो 2014 से स्थिति बेहतर दिख रही है। विपक्ष पूरी तरह से धाराशायी है। रालोद भी भाजपा के साथ आने वाला है। कांग्रेस और सपा के बीच तकरार अब भी चल रही है। ऐसे में भाजपा 2014 के रिकार्ड को तोड़ सकती है।

इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह का कहना है कि विपक्ष की भूमिका में न तो कांग्रेस आ पा रही है और न ही सपा। ऐसे में भाजपा के लिए एकतरफा बैटिंग करने का चांस बनता जा रहा है। जो लोग विरोध में जाना चाहते हैं। उनके लिए भी कोई ऐसा विरोधी नहीं दिख रहा, जो भाजपा को मात दे सके। ऐसे में भाजपा क्लीन स्वीप भी कर दे तो आश्चर्य नहीं होगा।

भाजपा के प्रदेश महामंत्री संजय राय का कहना है कि हम 80 का लक्ष्य नहीं, संकल्प लेकर चल रहे हैं। उप्र की जनता का आशीर्वाद भाजपा के साथ है। हम सभी 80 सीटें जीतेंगे। यहां विपक्ष अपने विपक्ष की भूमिका में ही नजर नहीं आ रहा है।

उपेन्द्र/बृजनंदन

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