अमर शहीदों की याद में खोला गया बलिया जिला कारागार का फाटक
बलिया (हि. स.)। ”जर्जर तन बूढ़े भारत की मस्ती भरी जवानी है, भारत छोड़ो के नारे की बलिया अमिट निशानी है…। ” 1942 में आज ही के दिन यानी 19 अगस्त को बलिया के क्रांतिकारियों ने गांधी जी के दिए मंत्र करो या मरो को चरितार्थ करते हुए जिले को अंग्रेजी हुकूमत की बेड़ियों से आजाद करा दिया था। जिसकी स्मृति में हर साल की तरह इस बार भी जिला कारागार का फाटक सांकेतिक रूप से खोला गया और सेनानी बाहर निकले।
स्वतंत्रता सेनानी और उनके उत्तराधिकारी जिले के आला अधिकारियों और नेताओं के साथ जिला कारागार के मुख्य गेट से जैसे ही बाहर निकले, पूरा माहौल भारत माता की जय और वंदेमातरम के नारों से गूंज उठा। जुलूस की शक्ल में सेनानी और तमाम लोगों ने सबसे पहले जेल परिसर स्थित शहीद राजकुमार बाघ की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर अपनी कृतज्ञता व्यक्त की। इसके बाद वहां से पैदल ही कुंवर सिंह चौराहा पर पहुंचे। यहां वीर कुंवर सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के बाद टीडी काॅलेज चौराहे पर स्वतंत्रता सेनानी पंडित रामदहिन ओझा की प्रतिमा पर भी माल्यार्पण कर नमन किया गया। यहां से सेनानियों, समाजसेवियों और अधिकारियों का जत्था चित्तू पाण्डेय की प्रतिमा को नमन करता हुआ शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए शहीद पार्क चौक पहुंचा। फिर टाउन हॉल बापू भवन में सभा हुई। जहां 1942 के अगस्त क्रांति में शहीद होने वाले क्रांतिकारियों को याद किया गया।
इस मौके पर जिलाधिकारी अदिति सिंह, एसपी राजनकरन नय्यर, एडीएम रामआसरे, सिटी मजिस्ट्रेट नागेंद्र सिंह, रामविचार पाण्डेय, शिवकुमार कौशिकेय आदि थे।