अपनों से सताए लोगों के लिए स्वर्ग से कम नहीं वृद्धाश्रम
मीरजापुर (हि.स.)। विंध्याचल के पंटेगरा स्थित वृद्धाश्रम अपनों के सताए गए वृद्धों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। सुबह चाय, हलवा के नाश्ते से लेकर दोपहर में हरी सब्जी और रात को दाल चावल सहित मिष्ठान खाने में दिया जाता है। अपनों के दर्द से तंग आकर इस आश्रम में कुल सौ महिला-पुरुष वृद्ध अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
नगर की आबादी से करीब दस किलोमीटर दूर विंध्याचल के पंटेगरा स्थित इस आश्रम का नाम वृद्धजन आवास (वृद्धाश्रम) व महिला आश्रम है। दो मंजिला इस भवन में किचन, बाथरूम से लेकर तीन हाल बने हैं। वृद्धजन आवास में 15 पुरुष व 43 महिला समेत 58 वृद्ध हैं। वहीं महिला आश्रम में वृद्ध महिलाओं की संख्या 42 है। ये सभी वो हैं, जिनका अच्छा वक्त गुजर गया और जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे तो उनके अपनों ने ही उनका साथ छोड़ दिया। यहां रहने के साथ-साथ सभी तरह की सुविधाएं हैं। खाने को तीनों टाइम चाय-नाश्ता, भोजन उनकी आवश्यकता के हिसाब से दिया जाता है। चलने-फिरने में असमर्थ वृद्धों के लिए भी बेहतर इंतजाम है। वृद्धाश्रम समाज कल्याण विभाग की ओर से तथा महिला वृद्धाश्रम महिला कल्याण विभाग की ओर से संचालित है।
समाज में वृद्धों की स्थिति देख सेवा को समर्पित किया जीवन : सुरेश प्रताप वृद्धजन आवास के फाउंडर सुरेश प्रताप सिंह निवासी इंदिरा नगर लखनऊ ने बताया कि वे शुरु से ही मास्टर आफ सोशल वर्क से जुड़े थे। ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा करने पर गांवों में बुजुर्गों की स्थिति काफी खराब दिखी। कई ऐसे परिवारों से मुलाकात हुई, जिनके वृद्ध एक गिलास पानी के लिए तरस रहे थे। ऐसे मंजर देख मैंने यह ठान लिया कि अपना पूरा जीवन वृद्धों की सेवा को समर्पित करूंगा और मैंने वृद्धजन आवास (वृद्धाश्रम) के माध्यम से सेवा शुरु कर दी।
वृद्धाश्रम के अधीक्षक संजय शर्मा ने बताया कि 1991 में विश्व वृद्धा संगठन ने एक गोष्ठी कर वृद्धों की सेवा व संरक्षण के लिए वृद्धाश्रम बनवाने का निर्णय लिया। वृद्धों के सम्मान को ध्यान में रखते हुए एक अक्टूबर 2001 से अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाया जाने लगा। 2016 में प्रदेश सरकार ने सभी जनपदों में वृद्धाश्रम खोले जाने की व्यवस्था की। इसकी जिम्मेदारी समाज कल्याण विभाग को दी गई। अधीक्षक बताते हैं कि आश्रम पर रहने वाले वृद्धों की सेवा को यहां 15 कर्मचारी हर समय रहते हैं, जो उनके खाने-पीने से लेकर हर तरह की सुविधा का पूरा ध्यान रखते हैं। वहीं महिला आश्रम के सचिव शकल नरायन मौर्य ने बताया कि महिला आश्रम में कुल 12 कर्मचारी हैं।
संजय शर्मा का कहना है कि वह खुशनसीब हैं, जिसे अपने माता-पिता के साथ दूसरों की भी सेवा का अवसर मिला है। वह पिछले चार साल से सभी की देखभाल कर रहे हैं। यहां रहकर सभी से लगाव हो गया है। यहां रहने वाले वृद्ध भी उन्हें अपना समझते हैं। उनका कहना है कि यहां रहने वाले अधिकांश वो लोग हैं, जो गंभीर बीमारी के शिकार होने पर उनके घर वाले भी उनसे किनारा कर लेते हैं, लेकिन उनकी सेवा करना उन्हें अच्छा लगता है।
दाह संस्कार भी करती है संस्था वृद्धाश्रम पर अंतिम पड़ाव से गुजर रहीं चार महिला समेत आठ वृद्धजनों की अब तक मौत हो चुकी है। इनमें से तीन महिला व एक पुरुष वृद्ध का दाह संस्कार भी संस्था की ओर से किया गया। शेष के परिजनों ने उनका दाह संस्कार किया था।
हमारे लिए स्वर्ग के समान है आश्रम वृद्धाश्रम पर तीन वर्षों से जीवन गुजार रहे बिहार के मुंगेर जिले के चंदन बाग निवासी रतन बताते हैं कि वे बचपन से ही कलह के चलते परिवार से दूर चले गए थे। होटलों पर काम करके किसी तरह पेट भरते थे। बड़ा होने पर उन्होंने बंगाल का रूख किया और टीटागढ़ में एक होटल पर काम करने लगे। तीन वर्ष पूर्व वे विंध्याचल आए और रेलवे स्टेशन पर ही उनकी मुलाकात वृद्धाश्रम के एक कर्मचारी जाफर हाशमी से हुई। उन्होंने उनकी स्थिति देख उन्हें वृद्धाश्रम पर रहने की सलाह दी। तब से वे वृद्धाश्रम में रहने लगे। इस बीच फरवरी माह में उन्हें ब्रेन स्टोक हुआ तो संस्था ने उनका इलाज कराया। पहले से अब वे काफी स्वस्थ हैं और नियमित दवा का सेवन भी करते हैं।
पंडित से लेकर गायक तक मौजूद हैं आश्रम में अपनों से प्रताड़ित वृद्धों की फेहरिस्त काफी बड़ी है। वृद्धाश्रम में नगर के गफूर खां की गली निवासी भगवती प्रसाद चौरसिया, भैसहिया टोला निवासी 84 वर्षीय शिवनाथ, स्वामी दयानंद मार्ग वासलीगंज के 72 वर्षीय कमला प्रसाद, चील्ह निवासी श्यामलाल 68 वर्ष व बिहार के आरा जिले के नारायणपुर निवासी चंद्रभूषण श्रीवास्तव समेत कई वृद्धाश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यहां वे भजन-कीर्तन के साथ अन्य गतिविधियों में खुलकर प्रतिभाग करते हैं। आश्रम की ओर से भी लगातार विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वृद्धाश्रम पर गायक से लेकर पंडित तक मौजूद हैं। यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रम में बाहर से किसी को बुलाने की जरूरत नहीं पड़ती।
पत्नी के साथ वृद्धाश्रम पर जीवन गुजार रहे अमृतलाल
विंध्याचल निवासी 81 वर्षीय अमृतलाल अपनी पत्नी के साथ लगभग डेढ़ वर्ष से वृद्धाश्रम में हैं। उनके दो बच्चे हैं, जिनका भरा-पूरा परिवार है लेकिन माता पिता को साथ रखने में वे असमर्थ हैं। लिहाजा उन्होंने अपने माता-पिता को घर से निकाल दिया। मजबूरी में वृद्ध दंपत्ति वृद्धाश्रम पर अपना जीवन गुजार रहा है।
केरल समेत कई प्रांत के वृद्धजन रहते हैं आश्रम पर वृद्धाश्रम पर देश के कई प्रांतों के वृद्धजन निवास कर रहे हैं। चार वर्ष पूर्व केरल निवासी परी देवी (काल्पनिक नाम) परिवार के साथ विंध्याचल आई थी। कलह के चलते वह यहीं पर रूक गई। वृद्धाश्रम उसका सहारा बना है। उनकी भाषा न समझ पाने की वजह से वृद्धाश्रम के कर्मियों को थोड़ी बहुत दिक्कत तो आ रही है लेकिन फिर भी इशारे से वे उनकी बात समझ पाते हैं और उनकी सेवा में लगे हैं।