हमारे धर्म ग्रन्थों में भी वर्णित है होम्योपैथी की महिमा

डा. चन्द्र गोपाल पाण्डेय

होम्योपैथिक चिकित्सा विधा भले जर्मनी में जन्मी हो, लेकिन यह भारत भूमि पर अपनी खूबियों के चलते वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में शोहरत हासिल कर रही है। इसकी वैज्ञानिकता को लेकर सवाल करने वालों का मुंह नैनो साइंटिस्टों ने यह बताकर बन्द कराया कि होम्योपैथिक दवाएं नैनो पार्टिकिल्स के रूप में उसके हाई पोटेंसी तक के डायलूशन में मौजूद हैं। होम्योपैथी का सिंद्धांत हमारे धर्म ग्रन्थों में वर्णित है। बाल्मीकि रामायण के प्रथम स्कंध के पांचवें अध्याय का श्लोक-33, कम से कम यही बताता है।
‘आमयो यश्च भूतानां जायते येन सुव्रत।
तदैव ह्यमयं द्रव्यं न पुनाति चिकित्सतम।’
अर्थात् प्राणियों को जिस पदार्थ के सेवन से जो रोग हो जाता है, वही पदार्थ चिकित्सा विधि के अनुसार प्रयोग करने पर क्या उस रोग को दूर नहीं करता? इतना ही नहीं, चिकित्सा की यह पद्धति वेदान्त दर्शन के अति करीब है। होम्योपैथी मानती है कि रोग का बीज बाहर नहीं, मनुष्य के भीतर है। भीतर आत्मा रूपी सत्ता शरीर रूपी तंत्र का संचालन कर रही है। इसे होम्योपैथी में ’वाइटल फोर्स’ कहा गया है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, इच्छा, द्वेष, सुख-दुख, ज्ञान आदि जो अभौतिक तत्व मनुष्य के भीतर हैं, उनमें विकृति आने पर रोग उत्पन्न हो जाता है। इससे मुक्त रहने पर रोग मनुष्य के निकट नहीं आ सकता। वैदिक साहित्य में जिसे सूक्ष्म शरीर कहा गया है, उसे होम्योपैथी में वाइटल फोर्स कहते हैं।
वैदिक विचारधारा का निचोड़ गीता में इस तरह है :
‘संगात संजायते कामः कामात क्रोधोभिजायते
क्रोधात भवति संमोहः सँमोहात स्मृति विभृमः,
स्मृतिभ्रंशांत बुद्धिनाशः बुद्धिनाशात प्रणष्यति।’
(मनुष्य का नाश अर्थात उसमें रोग का बीज काम, क्रोध आदि मानसिक विषयों के कारण होता है।)
यही बात डॉ हैनिमैन ने वाइटल फोर्स के बारे में भी कहा है। सांख्य दर्शन ने जिसे सूक्ष्म शरीर कहा है, उसी को होम्योपैथी वाइटल फोर्स कहती है। कोरोना के इस संक्रमण काल में होम्योपैथी की शक्तिकृत दवाओं ने संक्रमित समाज के उपचार में केवल योगदान ही नहीं दिया है, बल्कि वाइटल फोर्स को ताकतवर बनाकर बचाव भी किया है। लेकिन इसे कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में देर से और आधे मन से सीमित अवसर दिया जाना अवश्य चिंताजनक है। आयुर्विज्ञान के नीतिकारों को भारतीय दर्शन व अर्थव्यवस्था के सर्वथा अनुकूल होम्योपैथी को चिकित्सा की मुख्यधारा में शामिल करने के सवाल पर विचार करना चाहिये।

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