नजमी कमाल की कलम से
……….. ताज़ा ग़ज़ल बराय इसलाह……
देख के हमको झुंझला ए
कोई कमी जब ना पा ए
हमने पूछा हाल कभी
कुछ ना बोले शरमा ए
जो नफ़रत की बात करे,
किसके दिल को वो भा ए
दुनिया की इस दौड़ मे हम,
देखो कैसा पगला ए
साँसें भी जब रुकने लगीं
लब पर आया तब हा ए
हूर मिलेगी जन्नत मे,
उसकी समझ मे कब आ ए
बच्चे भी इस दौर मे अब
वक़्त से पहले मुरझा ए
राज़ी रब को कर नजमी
जाने क़ज़ा कब आ जा ए