उम्मीदों पर कितना खरा टीका?

संजय स्वतंत्र

आजकल दिन ढलते ही सांझ की दुलहन चली आती है। उम्मीदों से भरा दिन पूरा हो जाता है, नई सुबह के इंतजार में। … उस दिन शाम होते ही खबरों के जंगल से गुजरते हुए कोरोना के टीके संबंधी कई खबरों ने उम्मीदें जर्गाइं। एक के बाद एक तीन कंपनियों ने टीके के आपात इस्तेमाल के लिए अर्जियां लर्गाइं। यही वह दिन था जब उत्तरी आयरलैंड की 90 साल की महिला कीनान मैगी को कोरोना का पहला टीका लगाया गया। वे टीका लगवाने वाली दुनिया की पहली महिला बनीं। इसी के साथ दुनिया में पहले भारतीय दंपति शुक्ला जी और उनकी पत्नी रंजना को भी टीका लगाया गया। यह बेहद सुकून भरी खबर थी। कोरोना के खात्मे की दिशा में एक बड़ी खबर थी। और कुछ ही घंटे बाद देश के स्वास्थ्य मंत्री ने भी बता दिया कि भारत में कुछ ही हफ्ते में टीके आने की उम्मीद है।
कोरोना का खौफ पूरी दुनिया से उतर ही रहा था कि दो दिन बाद मेलबर्न से खबर आई कि विकसित किए जा रहे एक टीके का चिकित्सीय परीक्षण बंद कर दिया गया है। परीक्षण के प्राथमिक चरण में पता चला कि जिन लोगों को टीके दिए जा रहे थे उनमें कुछ के शरीर में एचआइवी के लिए एंटीबाडी का निर्माण चल रहा था। और यह एचआइवी के प्रोटीन से मिलता जुलता था। ये कुछ लोग एचआईवी संक्रमित हो गए हैं। नतीजा यह कि ऑस्ट्रेलिया की सरकार से बातचीत करने के बाद क्वींसलैंड विश्वविद्यालय और सीएसएल ने टीके के परीक्षण के दूसरे और तीसरे चरण का काम रोकने का फैसला किया। अब कोरोना के बाद टीके को लेकर पूरे विश्व में आशंकाएं तारी हो गई हैं। एक भरीपूरी उम्मीद को यह गहरा धक्का है। अपने यहां भी कुछ मामले देखे ही हैं आपने। यानी मुक्कमल टीके का अब भी इंतजार हैं। यों भी जब दवाओं के साइड इफेक्ट होते हैं तो टीके का नहीं होगा, यह कैसे कहा जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले ही कह दिया है कि मुक्म्मल टीके जैसी कोई चीज नहीं जो सब को सुरक्षा दे। जाहिर है कि हर उपचार के अपने जोखिम हैं।
जन स्वास्थ्य विज्ञानी डॉ एके अरुण बताते हैं कि टीके का निर्माण निहायत ही वैज्ञानिक और तकनीकी मसला है। इसलिए टीका जल्द आ जाए यह उम्मीद तो हम न ही करें और किसी प्रकार की जल्दबाजी में लापरवाही न करें। वे बताते हैं कि कोरोना काल में दवा कारोबार लगभग 85 फीसद बदल चुका है। 22 लाख करोड़ कमाने वाले इस दवा क्षेत्र में टीके की बिक्री इसे कहां पहुंचा देगी, यह समझा जा सकता है। दवा उद्योग ने कभी यह परवाह नहीं कि गरीब से गरीब लोगों तक सस्ती दवाइयां कैसे पहुंचे। अपने यहां इस कोशिश को पलीता लगा दिया गया। टीके के निर्माण में बड़ी दवा कंपनियां जिस तरह से हड़बड़ी दिखा रही हैं, उसके पीछे की वजह सरकारों का दबाव जरूर है मगर मुनाफे का खेल भी कम नहीं हैं। आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि पूरी दुनिया में 213 टीकों पर परीक्षण चल रहा है और कोई दस टीके ही परीक्षण के तीसरे चरण में हैं।
तमाम आशंकाओं और उम्मीदों के बीच टीके जल्द आने की घोषणा हो रही है। कई देश तो करोड़ों खुराक के आर्डर दे चुके हैं। कंपनियों में होड़ है कि किसके टीके कितने ज्यादा बिकते हैं। फाइजर-बायोएनटेक और मार्डना के टीके 95 फीसद सफल होने की खबरों ने उम्मीदें जगाई हैं। आम लोग खबरें पढ़ कर खुश हो रहे हैं। डॉ अरुण बताते हैं कि टीके आने के शोर में यह तथ्य दब गया है जिन टीकों की सफलता का दावा किया जा रहा है, उनमें संक्रमण रोकने की कितनी क्षमता है। जो भी हो टीकों की गुणवत्ता, वैधता और इसके दुष्परिणाम चर्चा होनी चाहिए। यह भी तय होना चाहिए कि टीके बाजार के हवाले न हों। अगर बाजार में लाया भी जाए तो उसे निर्धारित मूल्यों पर बेचने की इजाजत हो।
संक्रमण के मामलों को मीडिया में बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया। मगर उम्मीद करें कि दुनिया भर के अखबार और समाचार चैनल्स कम से कम टीके को को लेकर सच्चाई जरूर सामने रखेंगे। देश के प्रसिद्ध जन स्वास्थ्य विज्ञानी डॉ. एके अरुण का कहना है कि यह साल तो कोरोना के खौफ से गुजरा मगर 2021 टीकों की मारामारी में गुजरेगा। इसलिए कम से कम भ्रम जरूर दूर किया जाना चाहिए कि टीकों की जरूरत किसे है और किसे नहीं। लोग डर से बाहर निकलें। सजग रहें। संक्रमण से बचने के लिए ठीक से मास्क लगाएं। सुरक्षित दूरी रखें। हाध जरूर धोएं। ऐहतियात ही सबसे बड़ा टीका है। हौसला रखिए, कोरोना को आप नए साल में बेदम करने जा रहे हैं। अगर आप सकारात्मक रहें तो महामारी के खिलाफ यह युद्ध आप आने वाले महीनों में यकीनन जीत जाएंगे। सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें।

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